“विश्व विख्यात फूलों की घाटी पर संकट” – इंदिरा गाँधी जी को पत्र

चंडी प्रसाद भट्ट,
सर्वोदय केंद्र गोपेश्वर (चमोली)
दिनांक १ ५ मार्च १ ९ ८ २

प्रतिष्ठा में,
आदरणीया श्रीमती इंदिरागांधी,
प्रधान मंत्री, भारत सरकार,
नई दिल्ली

माननीया,

आन्तरिक हिमालय में, सीमान्त जनपद चमोली के भूगोलिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र जोशीमठ से बद्रीनाथ धाम के बीच विष्णु प्रयाग जल विद्युत् परियोजना का निर्माण किया जा रहा है। यह योजना इतनी ऊंचाई पर अपने प्रकार की पहली योजना है। इस जल विद्युत् परियोजना के अंतर्गत अलकनंदा का जल लामबगड़ के पास रोककर उसे एक सुरंग द्वारा जोशीमठ के सामने हाथी पर्वत शिखर पर लाकर लगभग एक हज़ार मीटर का गिराव देकर जोशीमठ नगर की जड़ पर एक विशाल भूमिगत शक्ति गृह में डाला जाना है। इसके लिए प्रारंभिक कार्य जॊरो पर चल रहा है।

यद्यपि विषय – विशेषज्ञों ने इसके निर्माण में भूगोलिक व अन्य नक्नीकी पहलुओं पर विचार कर लिया होगा, फिर भी यहाँ के पर्यावरण प्रेमियों/ग्रामीणों को इसके निर्माण पर गहरी चिंता है, जो आप तक पहुचाना आवश्यक है। जिन बिन्दुओं पर चिंता व्यक्त की जा रही है वे संक्षेप में निम्न है :

  1. मध्य हिमालय का यह क्षेत्र भूगोलिक दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील है और यहाँ के पहाड़ बहुत कच्चे हैं जिनमें भूस्खलन और भूक्षरण तेजी से जारी है। प्रति वर्ष इसकी गति व मात्रा निरंतर बढती जा रही है।
  2. योजना के लिए चुना गया क्षेत्र अधिकांशत: खड़े तेज ढाल वाले हिमालय पर्वतों से घिरा है जहाँ बड़े पैमाने पर हिमखंडो का सृ स्खलन होता रहा है।
  3. इस योजना के लिए मोटर सड़क का निर्माण (बाई पास ) जोशीमठ नगर के निचले हिस्से में होना है तथा मुख्या निर्माण जोशीमठ के सामने की पहाड़ी पर होना है। भूवैज्ञानिकों के अनुसार जोशीमठ नगर एक भूस्खलन पर बसा हुआ है और इससे अधिक छेड़छाड़ नगर के लिए हानिकारक है। विशेष रूप से विस्फोटकों के प्रयोग के विरुद्ध कड़ी चेतावनी दी गयी है।
  4. इस योजना में विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी से उद्गमित भ्यूंडार नहीं (पुष्पवती नदी) का जन भ्यूंडार गाँव के पास से करीब ७ किलोमीटर लम्बी एक अन्य सुरंग से उत्तर पश्चिम की ओर ले जाकर हनुमान चट्टी में अलकनंदा से मिलाने का प्रस्ताव है। इससे गोविंद घाट से फूलों की घाटी तक कुछ हिस्सों में मोटर सड़कों का निर्माण व अन्य बाहरी हलचल होगी जिससे फूलों की घाटी के वातावरण में अप्रत्याशित परिवर्तन संभावित है।
  5. इस पूरे निर्माण कार्य से निकलने वाला मलवा लगभग दस लाख घन फीट होगा जो अलकनंदा के ऊपर उठा देगा और बाड़ की विभीषिका की संभावना बढ़ जाएगी।
  6. योजना के निर्माण में हज़ारों की संख्या में क्ष्रमिक लगेंगे और उनकी उर्जा व अन्य आवश्यकताओं का भार इस क्षेत्र पर पड़ेगा और वनस्पति, वृक्ष व वन्य जंतुओं का तेजी से ह्रास होगा। इस क्षेत्र की वनस्पति का पिछले वर्षों से कई एजेंसियों द्वारा विनाश किया जा रहा था। इसके प्रतिरॊध में भ्यूंडार गाँव की महिलओं ने वृक्षों को बचाने के लिए वर्ष १९७८ (1978) में चिपको आन्दोलन भी चलाया था।
  7. योजना के मूल स्थल तक जाने के लिए हेलंग के पास से मारवाड़ी तक बाई पास का निर्माण किया जा रहा है, इससे जोशीमठ, जो भूस्खलन पर बसा है, को भूस्खलन व भू-धासव का खतरा तो है ही, बद्रीनाथ जाने के लिए भविष्य में इसी मार्ग का उपयोग होगा और जोशीमठ का पर्यटक , ऐतिहासिक, संस्कृतिक व व्यापारिक महत्व समाप्त हो जायेगा।
  8. इस विशाल योजना के निर्माण में विस्फोटकों का अत्यधिक प्रयोग होगा, उससे इन कच्चे पहाड़ों पर दुष्प्रभाव पड़े बिना नहीं रहेगा।

उपर्युक्त बिन्दुओं के अतिरिक्त अनेक बाह्य व आन्तरिक प्रभाव उभर कर सामने आ सके हैं जिससे कोई नयी विपत्ति देश को भोगनी पड़ेगी। अतः इस परियोजना के सभी पक्षों पर विचार हेतु पर्यावरण, भूगर्भ, वनस्पति , अवलांच व मौसम विज्ञानं के विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया जाना चाहिए जो विस्तृत अध्ययन से देश को यह आश्वासन दे सकें कि इस परियोजना के निर्माण से देश को जो लाभ होगा नुक्सान उससे अधिक नहीं होगा और तभी योजना पर आगे कार्य आरम्भ करना चाहिए।

इसमें दो मत नहीं हो सकते की देश की उर्जा के साधन बढाने की नितांत आवश्यकता है और पर्वतीय क्षेत्रों से उद्गमित नदियों से इसका उत्पादन किया जाना चाहिए, किन्तु यह देखना श्रेयस्कर होगा कि उसका मूल्य प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से हमें न चुकाना पड़ जाए जितना उससे लाभ नहीं हो। हिमालय के संधर्भ में इससे अधिक गहराई से सोचने की इसलिए भी आवश्यकता है क्योंकि हिमालय इस देश के मौसम का नियंत्रक है तथा यहाँ से कई नदियाँ निकलती हैं जिनसे राष्ट्र की अधिक व्यवस्था जुडी है .

हिमालय की नदियों की तीव्र प्रवाही जलशक्ति का उपयोग उर्जा के उत्पादन में किया जाना तो चाहिए किन्तु हिमालय क्षेत्र में बड़ी विद्युत् परियोजनओं का मोह हमें छोड़ना होगा। छोटी-छोटी जल विद्दुत परियोजनाओं की एक श्रंखला का निर्माण कर विद्युत् की बड़ी परियोजनाओं के कुल योग से भी अधिक विद्दुत प्राप्त की जा सकती है। अतः इस ओर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।

मुझे पिछले दिनों नैरोबी में विश्व उर्जा सम्मलेन में चिपको आन्दोलन के प्रतिनिधि के रूप में भाग लेने का अवसर मिला। उस सम्मलेन में वनों पर दबाव कम करने पर अधिक जोर दिया गया था, सम्मलेन में यह भी बताया गया की चीन, कनाडा अदि देशों ने अपने यहाँ नदी-नालों पर लघु बिजली परियोजनाओं की विशाल श्रिंखला खड़ी की है ७० किलोवाट से एक मेगावाट की क्षमता वाली विद्दुत परियोजनाओं की संख्या केवल चीन में ही लगभग अस्सी हज़ार हैं।

हमारे देश के पर्वतीय क्षेत्रों में भी कई लघु जल विद्दुत परियोजनाएं हैं। चमोली जनपद में इस समय २ ० ० किलोवाट से लेकर ७ ५ ० किलोवाट तक की क्षमता वाली लगभग दस इकाइयाँ हैं। आगे इनके विस्तार की पर्याप्त संभावना है।

नदी नालों के तेज जल प्रवाह से विद्दुत उत्पादन की दो इकाइयाँ, अपने अल्प साधनों से चिपको आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने वाली हमारी दो संस्थाओं ने प्रायोगिक रूप से आरंभ की है। यदि इन्हें आधुनिक टेक्नोलॉजी मिले तो इनका व्यापक विस्तार हो सकता है।

अतः मै यह निवेदन करना चाहूँगा कि तीव्र-प्रवाहनी अलकनंदा विष्णु-प्रयाग जल विद्युत परियोजना, तथा गंगा व उसकी सहायक नदियों पर बनने वाली विशाल विद्युत परियोजनाओं के बजाय छोटी छोटी सैकड़ों विद्युत उत्पादन हेतु ग्रामीणों, स्वयंसेवी संस्थाओं और छोटे उद्यमियों को प्रोत्साहित किया जाये और उन्हें वित्तीय व तकनिकी सहायता उपलब्ध करायी जाए। इससे हिमालय को भी क्षति नहीं होगी व पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा तथा विकेंद्रियाक्रित व्यवस्था से प्रयाप्त विद्युत उत्पादन भी हो सकेगा

विनीत
चंडी प्रसाद भट्ट

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